National Education Policy (NEP) -2020 : स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विकास

National Education Policy (NEP) -2020 : स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विकास

National Education Policy (NEP) -2020 : स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विकास


भारत सरकार द्वारा देश में शिक्षा की स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए हैं। आइए हम इस editorial के मध्यम से स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विकाश पर Concept को जानते और समझते है।


राधाकृष्णन आयोग (Radhakrishnan Commission ) / विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग -1948


स्वतंत्र भारत में पहली बार नवंबर 1948 में राधाकृष्णन आयोग का गठन किया गया था जिसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के नाम से भी जाना जाता है।


यह आयोग देश में विश्वविद्यालय शिक्षा के संबंध में रिपोर्ट देने हेतु बनाया गया था । 


इस आयोग ने निम्न सिफारिशें की थीं-


विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा ग्रहण करने से पहले 12 वर्ष का अध्ययन होना चाहिये।

उच्च स्तरीय शिक्षा  मुख्य रूप से तीन स्तर  की होनी चाहिए।

(i) सामान्य शिक्षा (ii) सरकारी शिक्षा  (iii) व्यवसायिक शिक्षा


विश्वविद्यालय शिक्षा को ‘समवर्ती सूची में सम्मिलित किये जाने का प्रस्ताव किया गया।


देश में विश्वविद्यालय शिक्षा की देख-रेख हेतु  एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission) का गठन किए जाने का प्रस्ताव रखा गया।


इन्हीं सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का गठन किया।  पुनः 1956 में संसद में कानून पेशकर एवम पासकर इसे स्वायत्तशासी निकाय का दर्जा दे दिया गया। इस आयोग का कार्य विश्वविद्यालय शिक्षा की देखरेख, विश्वविद्यालयों में शिक्षा एवं शोध  जांच करना तथा उनमें समन्वय स्थापित करना है। 


1961 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ दौलत सिंह कोठारी को नियुक्त किया गया वे वहा दस वर्ष तक रहे।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1968  (कोठारी आयोग)


1964 में भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ दौलत सिंह कोठारी को राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1968 कोठारी आयोग के नाम से भी जाना जाता है।


आयोग ने 29 जून 1966 को अपनी रिपोर्ट को  पेश किया। 


भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 24 जुलाई 1968 को घोषित की गई। यह पूरी तरीके से कोठारी आयोग के रिपोर्ट पर आधारित थी।


इसमें शिक्षा प्रणाली का रूपान्तरण  10+2+3 पद्धति पर किया गया यानी दसवीं के बाद दो class एवम उसके बाद तीन Class (दसवी+ बारहवी+स्नातक स्तर)।


इसमें शिक्षा को राष्ट्रीय महत्व का बिषय माना गया।


शिक्षा पर केंद्रीय बजट का 6% व्यय किया जाएगा।


अनिवार्य एवं निशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की गई

इसी के अंतर्गत 1976 में शिक्षा को समवर्ती सूची में सम्मिलित कर लिया गया। 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986 (नवीन शिक्षा नीति)


इस नीति में भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक असमानताओं को दूर करने तथा अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर दिया गया।


प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986 में लॉन्च किया गया।


इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया गया।

संशोधन - 1992


सन 1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 में संशोधन किया गया जिसका उद्देश्य था देश में व्यावसायिक और तकनीकी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये All India स्तर पर एक Exam कराना। 

जैसे-Joint Entrance Examination-JEE तथा (All India Engineering Entrance Examination-AIEEE) 


शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) Act-2009


भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था थी जो की राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत होने के कारण यह न्यायालय द्वारा जरूरी नहीं ठहराया जा सकता था।

86 में संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2002 के अंतर्गत अनुच्छेद 21A में घोषणा की गई है कि राज्य 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा  इसका निर्माण राज्य करेगा इस प्रकार यह व्यवस्था केवल आवश्यक शिक्षा के मूल अधिकार के अंतर्गत है न की  व्यवसायिक शिक्षा के संदर्भ में।

यह संशोधन देश में सर्वशिक्षा के लक्ष्य में 1 मील का पत्थर साबित हुआ है सरकार ने यह कदम नागरिकों का अधिकार के मामले में द्वितीय क्रांति की तरह उठाया है।


अनुच्छेद 21A के अनुसरण में संसद ने बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार RTE अधिनियम 2009 अधिनियमित करके इस अधिनियम के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि 14 वर्ष की आयु तक के प्रत्येक बच्चे को संतोषजनक एवं समुचित गुणवत्ता वाली पूर्णकालिक प्रारंभिक शिक्षा का व्यवस्था किया जाय।


शिक्षा का अधिकार किसी भी स्तर पर है जिसमें व्यवसायिक शिक्षा जैसे चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग भी शामिल है


नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020


इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा की पहुँच, समता, गुणवत्ता, वहनीयता और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया है।


राष्ट्रिय शिक्षा नीति-2020 के तहत शिक्षा क्षेत्र पर देश की जीडीपी के 6% हिस्से के बराबर निवेश का लक्ष्य रखा गया है।

नई शिक्षा नीति-2020  के अंतर्गत ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (Ministry of Human Resource Development- MHRD) का नाम बदल कर ‘शिक्षा मंत्रालय’ (Education Ministry) कर दिया गया है।


1968 और वर्ष 1986 के बाद स्वतंत्र भारत की यह तीसरी शिक्षा नीति है। जोकि इसरो (ISRO) के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में जून 2017 में गठित की गई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट मई 2019 में प्रस्तुत किया।


इस समिति के रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति 2020 को घोषित किया गया। जो वर्ष 2022 से लागू होनी है।


इस नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारत के वर्तमान शिक्षा प्रणाली  10+2 के जगह 5+3+3+4 लागू कर दिया गया है।

क्या है (5+3+3+4) का Concept


आज तक भारत में 10+2 शिक्षा प्रणाली थी जिसमे बच्चे की स्कूल में एंट्री 6 वर्ष की उम्र में कक्षा 1 में होता था तथा बच्चा  12 वर्ष (10+2) तक किसी राज्य की बोर्ड के अधीन शिक्षा ग्रहण करता था फिर उसके बाद हायर education के लिए University में admission लेना पड़ता था।


लेकिन अब नई शिक्षा नीति के अंतर्गत बच्चे की स्कूल में एंट्री 3 वर्ष में होगी। तथा 5+3+3+4=15 वर्ष तक किसी राज्य बोर्ड के अधीन शिक्षा ग्रहण करेगा फिर Higher education के लिए University जायेगा।


यहां 5+3+3+4 स्टडी के लिए कुल चार  स्टेज है इन्ही को हमे बारी-बारी से समझना है।


पहला स्टेज- Foundation Stage (पहला 5 वर्ष)


यहां बच्चा 3 वर्ष के उम्र में स्कूल में एंट्री करेगा तथा पहले 5 वर्ष जो की  Foundation स्टेज होगा दो भागो में बटेगा यानी 5=(3+2)


3 वर्ष से 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिये आँगनवाड़ी/बालवाटिका/प्री-स्कूल की शिक्षा प्राप्त करेगा फिर

6 वर्ष से 8 वर्ष  तक के बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 और 2 में शिक्षा दी जाएगी।


इस स्टेज में बच्चे से कोई भी exam नही ली जाएगी।


दूसरा स्टेज - Preparatory Stage (दुसरा 3 वर्ष)


इस तीन वर्षो में बच्चा कक्षा 3, 4 व 5 की स्टडी करेगा तथा इस स्टेज में भी बच्चे से exam ली जायेगी।


इस स्टेज में बच्चे को उसके मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ने का प्रावधान किया गाय है।


तीसरा स्टेज - Middle Stage (तीसरा 3 वर्ष) 


इस तीन वर्षो में बच्चा कक्षा 6, 7 व 8 की स्टडी करेगा तथा इस स्टेज में भी बच्चे से exam ली जायेगी।


इसमें बच्चे को Computer code, Vocational/Tech, Maths, Science और Art इत्यादि की पढ़ाई करेगा।

इसमें बच्चा किसी एक भारतीय भाषा में पढ़ाई कर सकता है।


चौथा स्टेज - Secondary Stage (अंतिम 4 वर्ष)


इस चार वर्षो में बच्चा कक्षा 9, 10, 11 व 12 की स्टडी करेगा तथा इस स्टेज में भी बच्चे से exam ली जायेगी।


इसमें exam semester wise होगा यानी पहले की तरह 10वी तथा 12वी की बोर्ड के exam के बजाय प्रत्येक छमाही सेमेस्टर का एग्जाम देना होगा यानी कुल मिलाकर 8 एग्जाम देना होगा।


इसमें साइंस या आर्ट जैसे कोई स्ट्रीम का चुनाव करने का कोई विकल्प नहीं होगा बल्कि मल्टीपल सब्जेक्ट का चुनाव कर पढ़ाई कर सकते है।


इन सभी के अतिरिक्त इस स्टेज में एक विदेशी भाषा पढ़ने का भी विकल्प है।


Graduation स्नातक 


नई शिक्षा नीति 2020 के तहत graduation के पाठ्यक्रम को 3 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष कर दिया गया है।


स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टी लेवल  एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है यानी कोई स्टूडेंट graduation की एक वर्ष पढ़ाई कर छोड़ देता है तथा एक या दो वर्ष बाद आकार पुनः अगले कक्षा में एडमिशन ले सकता है।


इसके तहत छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे तथा पुनः दाखिला ले सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा जैसे -


1 वर्ष के बाद -प्रमाणपत्र 

2 वर्षों के बाद -एडवांस डिप्लोमा

3 वर्षों के बाद -स्नातक की डिग्री  

4 वर्षों के बाद -शोध के साथ स्नातक


Post Graduation - स्नातकोत्तर


नई शिक्षा नीति 2020 के तहत Post Graduation   के पाठ्यक्रम को  1 या 2 वर्ष के लिए रखा गया है। यानी कोई स्टूडेंट यदि स्नातक graduation की पढ़ाई 3 वर्ष का किया है तो उसे Post Graduation की पढ़ाई 2 वर्ष की करनी होगी तथा यदि वह 4 वर्ष की ग्रेजुएशन किया है तो उसे Post Graduation की पढ़ाई 1 वर्ष की करनी होगी। 


नई शिक्षा नीति 2020 के संबंध में कुछ अन्य तथ्य


राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा-3 तक के सभी बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने हेतु  योजना तैयार की जाएगी।

स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ NCERT द्वारा तैयार की जाएगी ।


वर्ष 2030 के बाद अध्यापकों को अध्यापन के लिये कम से कम 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना आवश्यक किया जाएगा।


उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकन को बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, 


इस नीति के तहत (M.Phil)  को समाप्त कर दिया गया।

चिकित्सा एवं कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिये एक सिंगल बॉडी के रूप में भारत का Higher Education Commission का गठन किया जाएगा।


तो  इस तरीके हमने स्वतंत्र भारत में शिक्षा के विकाश के Concept को समझा यदि यह मेरा Concept अगर आप लोगो को अच्छा लगा हो तो कृपया इस editorial को अपने दोस्तो को शेयर करे 





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